Describe the changing nature of geography

भूगोल की प्रकृति (NATURE OF GEOGRAPHY) भूगोल 'भू' + 'गोल' दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ 'पृथ्वी गोल' है। भूगोल वह विज्ञान है जो गोल पृथ्वी की आन्तरिक संरचना, बाह्य स्वरूप तथा वायुमण्डल आदि का अध्ययन करता है। यह अंग्रेजी भाषा के 'Geography शब्द का पर्यायवाची है। बताया जाता है कि अलेक्जेण्ड्रिया की, वेधशाला में विद्वानों ने ईसा से 2,300 वर्ष पूर्व ज्योग्राफी शब्द का प्रयोग किया था किन्तु इसके प्रमाण नहीं हैं। 'Geography' मूलरूप से दो यूनानी शब्दों से मिलकर बना है-'Geo' + 'Graphy'. 'Geo' का अर्थ 'पृथ्वी' तथा 'Graphy' का अर्थ 'वर्णन करना' है, अर्थात् इसकी परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है कि 'भूगोल वह विज्ञान है जिसके अन्तर्गत पृथ्वी का अध्ययन किया जाता है।' प्रमुख भूगोलवेत्ताओं के अनुसार, पृथ्वी का अर्थ केवल पृथ्वी के धरातल तक ही सीमित नहीं है वरन् उसके अन्तर्गत पृथ्वी के ऊपर की एक पतली वायुपेटी तथा धरातल के नीचे की एक पतली ही सीमित नहीं है वरन् उसके अन्तर्गत पृथ्वी के ऊपर की एक पतली वायुपेटी तथा धरातल के नीचे की एक पतली चट्टान की परत (layer) भी आ जाती है। इससे स्पष्ट है कि भूगोल विज्ञान में भूतल का अध्ययन होता है। इस भूतल में सभी महाद्वीप एवं महासागर, धरातल के ऊपर वायुमण्डलीय निचली परत, धरातल के नीचे की पतली परत एवं पृथ्वी के ग्रहीय सम्बन्ध सम्मिलित हैं।

भूगोल को विकसित करने का श्रेय यूनानी विद्वानों को है। प्रारम्भिक काल में यह नक्षत्र विज्ञान एवं खगोलकी का ही एक भाग माना जाता था। पूर्व में बताया गया है कि चिर यूनान काल में यह अलग विषय न होकर ज्ञानराशि का एक विशिष्ट और टॉलमी ने बताया कि इसके अन्तर्गत बसे हुए भागों के अध्ययन के साथ-साथ का के आपसी सम्बन्धों का भी अध्ययन होता है। उनके अनुसार, “भूगोल एक ऊर्जा विज्ञान है जो पृथ्वी का परावर्तन देखता है।"

(Geography is the subline science which sees in the heavens the reflection of the earth.) प्रसिद्ध रोमन विद्वान स्टूबो ने बताया है कि यह हमें पथ्वी एवं जल पर निवास करने वाली का बोध कराता है तथा यह जानकारी देता है कि पथ्वी के विभिन्न भागों में क्या विशेषताएँ है। उन्होंने भूगोल को एक प्रादेशिक विज्ञान के रूप में विकसित किया है। 

वास्तविक तो यह है कि भूगोल को आधुनिक विज्ञान के रूप में विकसित करने का श्रेय जर्मन विद्वानों को है। जर्मन भूगोलविद् वारेनियस ने सत्रहवीं शताब्दी में भूगोल के क्रमबद्ध अध्ययन को विशेष महत्त्व दिया। उसने प्रथम बार पृथ्वी की सतह तथा उस पर विकसित प्राकृतिक परिवेश के तत्त्व, स्थिति, धरातल, जल, मरुस्थल, पशु व वनस्पति जगत् को ही सम्मिलित नहीं किया अपितु मानव के विकासशील व सांस्कृतिक तत्त्वों का कों यथा--धार्मिक, सांस्कृतिक एवं विशिष्ट मानवीय वृत्तियों जैसे नगर शासन-त आ को सम्मिलित किया। उसने पृथ्वी की सतह को अध्ययन का केन्द्र माना तथा उस पर पाए जाने वाले तत्त्वों का अध्ययन किया। उन्होंने पृथ्वी के निवासियों के शारीरिक लक्षणों, कला, संस्कृति, रहन एहन आदि को भी आवश्यक माना। उन्होंने लिखा है कि किसी स्थान के निवासियों के मानवीय लक्षणों के अन्तर्गत वहाँ के निवासियों का वर्णन एवं शारीरिक लक्षण, कला, संस्कृति, वाणिज्य, भाषा, ध म, शासन, नगर, विख्यात स्थल एवं प्रसिद्ध व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।

अठारहवीं शताब्दी में प्राकृतिक विज्ञानों का विकास होने लगा जिससे भूगोल का भी विकास होने लगा। उन्नीसवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध भूगोल की प्रगति का सर्वोत्तम प्रतीक माना जाता है। जर्मन भूगोलवेत्ता काण्ट महोदय ने भूगोल की अनेक शाखाओं-यथा भौतिक, गणितीय, नैतिक, राजनीतिक, वाणिज्य एवं वातावरण विश्वास की नींव रखी। भूगोल के वैज्ञानिक स्वरूप की ओर जर्मन विद्वानों ने विशेष ध्यान दिया। इस दिशा में रेटजेल, हम्बोल्ट एवं रिटर विशेष उल्लेखनीय हैं। जर्मन भूगोलवेत्ता हम्बोल्ट महोदय ने भूगोल में प्रत्यक्ष गवेषणा की नींव रखी। उन्होंने भूगोल को प्रकृति के अध्ययन से सम्बन्धित विज्ञान माना। उनका मानना था कि सभी क्रमबद्ध विज्ञान पृथ्वी की परिघटनाओं से सम्बन्धित होते हैं। उन्होंने मानव तथा उसकी कृतियों को मात्र प्रकृति का उपज माना। इसी समय भानवीय क्रियाओं को प्राकृतिक परिवेश के संदर्भ में वणित किया जाने लगा जिससे मानव भूगोल को भूगोल माना जाने लगा। इसी समय प्रादेशिक भूगोल को भी महत्त्व दिया जाने लगा।

20वीं शताब्दी में भूगोल का विस्तार बड़े पैमाने पर हुआ तथा इसका विभाजन अनेक शाखाओं में होने लगा। जी भूगोलवेत्ता हेटनर महोदय ने इसे क्षेत्रीय विज्ञान माना तथा क्षेत्रों के अध्ययन में पृथ्वी एवं मानव दोनों को सम्मिलित भाना। उन्होंने भगोल को दार्शनिक एवं वैज्ञानिक आधार पर स्थापित किया। इसी समय फ्रांसीसी भगोलवेत्ता विडाल-डी-ला-ब्लाश महोदय ने भूगोल में संभववादी विचारधारा का विकास किया।

ब्रिटिश भूगोलवेत्ताओं ने भी भूगोल के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इनमें मैकिण्डर विशेष उल्लेखनीय रहे। उन्होंने ऐतिहासिक भूगोल पर गंभीर अध्ययन एवं चिंतन किया। मैकिण्डर के हृदय-स्थल की विचारधारा का विकसित रूप सामने आया। इसके बाद एण्ड्यू जे, हरबर्टसन ने प्रादेशिक भूगोल पर अपने विचार प्रकट किए क्योंकि उसकी मुख्य विचारधारा विश्व के प्रादेशिक भूगोल के अध्ययन की थी। उन्होंने प्राकृतिक प्रदेशों को ही भौगोलिक अध्ययन का आधार माना। उन्होंने इन प्रदेशों के मानवीय तत्त्वों को भी सम्मिलित किया था। रॉक्सवी ने मानव भूगोल पर बल दिया। इसके साथ-साथ प्रादेशिकता पर भी विचार किया। फ्लूयर ने मानवीय अध्ययनों की एकता पर अधिक बल दिया। उनका मानना था कि मानवीय समस्याओं के अध्ययन के लिए आवश्यक है कि इसमें स्थान, समय और प्रकार पर विचार आवश्यक है। एल. डी. स्टाम्प महोदय ने प्रादेशिक भूगोल पर अधिक बल दिया।

अमेरिका में भूगोल का वैज्ञानिक अध्ययन उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ही .. प्रारम्भ हो गया था जब जर्मन विद्वानों की निश्चयवादी विचारधारा का प्रसार हो चुका था। यहाँ बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से मध्य तक ईसा बोमैन का प्रमुख स्थान रखा क्योंकि वे स्वतंत्र विचारक थे। आरनोल्ड गायोट ने भौतिक भूगोल के क्षेत्र में अध्ययन किया तथा भू-संरचना, भूतल के स्वरूप तथा अपरदन की प्रक्रियाओं के अध्ययन पर अधिक ध्यान दिया। विलियम मोरिस डेविस ने भू-आकृति विज्ञान के क्षेत्र में विशेष कार्य किया। कुमारी सेम्पल हंटिंगटन, ईसा बोमैन, ग्रिफिथ टेलर तथा कार्लसावर ने मानव भूगोल के क्षेत्र में कार्य किया। 1950 के बाद भूगोल की प्रकृति में बहुत परिवर्तन हुआ। अब इसके अन्तर्गत आचरण भूगोल तथा तंत्र विश्लेषण आदि का अध्ययन किया जाने लगा। इसके साथ-साथ अब इसमें वायु फोटोग्राफी, कम्प्यूटर तंत्र तथा सुदूर संवेदन (Remote Sensing) आदि पर भी कार्य किया जाने लगा है।