Condolence letter to a friend on the death of mother


अपराजिता अपार्टमेंट कमरा नं.-201
|रोड नं _32 बड़ा बाजार कोलकाता
26 जून, 2009

प्रिय माहेश्वरी नमस्ते।

आज ही तेरा शोक-भरा पत्र प्राप्त हुआ। माताजी के देहान्त की बात पढ़कर मैं सन्न रह गया। उनकी अस्वस्थता से तो मैं अवगत था; किन्तु इतनी जल्दी वे हमलोगों को छोड़ जाएँगी, ऐसा कभी नहीं सोचा था। इस खबर को सुनकर तो तेरी चाची भी बहुत रोयी।

मेरे अजीज, भला होनी को कौन टाल सकता है ? इस दुःख घड़ी में तुम धैर्य न खोना; क्योंकि ऐसे समय ही इन्सान की असली परीक्षा होती है। नियति के इस दंड को तुम्हें स्वीकारना होगा। यह तो प्रकृति का नियम ही है। देखो, गोस्वमीजी ने रामचरितमानस में क्या लिखा है

"आए हैं सो जाएँगे, राजा रंक, फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ी चले, एक बँधै जंजीर ।।"

मेरे दोस्त, आदि और अन्त सब कुछ भाग्य के हाथ हैं। तुम इस सच्चाई को समझो और कलेजे पर पत्थर रख अपने कामों में लगो। ईश्वर करे, माताजी की दिवंगत आत्मा को चिरशांति मिले। विपत्ति की इस घड़ी में मैं स्वयं आकर तेरा दुःख बाँ-गा। कुछ अत्यावश्यक कार्यों से निवटकर मैं अगले सप्ताह आ रहा हूँ। शेष मिलने पर ।

तुम्हारा मित्र
वासुदेव सोलंकी